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अगर कुछ करना चाहते हो, तो कुछ इनके लिए कीजिये।
नहीं है जिनका कोई हमदर्द, खुशी उनके लिए दीजिए।।
अगर कुछ करना चाहते हो———।।
बहाकर लहू गरीबों का, बनाते हैं जो अपना घर।
बेघर यतीमों को करके, सजाते हैं जो अपना शहर।।
मनाते हैं जो खुशियां, आंसू मासूमों को देकर ।
अगर कुछ करना चाहते हो——–।।
हवस अपनी मिटाने को,कलियों से खेलते हैं कुछ।
अपनी ताकत दिखाने को, औरत को रौंदते हैं कुछ।।
देते नहीं उसको कभी इज्जत, औरत को बेचते हैं कुछ।
अगर कुछ करना चाहते हो———।।
रहते हैं इस वतन में वो, खाते हैं इस वतन का अन्न।
जमा करने को वो दौलत, बेच रहे हैं वो चमन।।
नहीं जो देश के रक्षक, जो है देश के दुश्मन ।
अगर कुछ करना चाहते हो——–।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद