विजय थक -हार कर ऑफिस से घर आता और जब उसके कानों में अपने दोनों बच्चों के लड़ने की आवाज सुनाई देती तब वह अंदर से टूट जाता। सोचने लगता कि “ऐसी परवरिश तो मैंने इन दोनों को दी नहीं जिसके कारण यें दोनों हमेशा ही घर को लड़ाई – झगड़े का अखाड़ा बना कर रख देते हैं। ऑफिस से निकलकर घर आते समय दिमाग में यही बातें चलती रहती है कि घर पहुंच कर बच्चों की तू – तू , मैं – मैं ना मुझे सुननी पड़े।”
विजय के दोनों बच्चे, बड़ी बेटी रिया और बेटा रियांश की उम्र में सिर्फ दो साल का फासला होने की वजह से ही उनके बीच लड़ाई – झगड़े होते हैं, ऐसी बातें वह अपने नाते – रिश्तेदारों के साथ- साथ सहकर्मियों के मुंह से भी हजारों बार सुन चुका है । पहले तो उसे भी यही लगता था कि उनके बीच उम्र का ज्यादा फैसला ना होने की वजह से ही ऐसा होता है लेकिन जब रोज – रोज यें बातें उसे सुनने को मिलती तब वह सोचने लगता कि कहीं कमी हमारी परवरिश में तो नहीं है लेकिन मैं तो अपनी पत्नी और बच्चों को जोर से भी नहीं डांटता यह सोच कर कि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। फिर क्या वजह है कि इन दोनों के बीच बनती ही नहीं?
रोज की तरह ही विजय आज भी घर लौटा लेकिन आज उसे आने में कुछ देर हो चुकी थी । ऐसे तो उसके घर आने का कोई निश्चित समय तय नहीं था क्योंकि ऑफिस में इन दिनों कुछ ज्यादा ही काम चल रहा था। मार्च का महीना था तो ऑफिस का काम बहुत बढ़ गया था।
विजय देर से घर पहुंचा । थके होने की वजह से बाहर बरामदे में ही लगी कुर्सी पर बैठ गया और अपने जूते को निकालने लगा बाएं पैर के जूते को उसने निकाल लिया था और जैसे ही दाहिने पैर के जूते को निकालने के लिए उसके हाथ बढ़े उसके कानों में तेजी से एक शब्द ऐसा आया जिसे सुनकर उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई । गुस्से से वह कांपने लगा । अपने बच्चों के मुंह से वह भी अपनी बड़ी बेटी के मुंह से इसे सुनने की उम्मीद तो उसे बिल्कुल भी नहीं थी । उसने अपने दोनों बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर के सबसे बड़े स्कूल में उनका नामांकन करा रखा था । स्कूल में एक शब्द भी हिंदी बोलने पर पाबंदी थी । दोनों बच्चे भी कहते थे कि यदि हम लोगों को हिंदी बोलते हुए कोई सुन लेता है तो उसे सजा दी जाती है या उसे फाइन भरना पड़ता है इसीलिए हम लोग स्कूल में अंग्रेजी ही बोलते हैं । विजय का सीना अपने बच्चों की बातें सुनकर और भी चौडी़ हो जाता। जिस उद्देश्य के लिए उसने उनका नामांकन अंग्रेजी स्कूल में करवाया था उस उद्देश्य की पूर्ति होती उसे दिख रही
थी।
दोनों बच्चों की आवाजें बरामदे तक आ रही थीं । विजय कुछ तो बहुत कुछ शायद सुनना था बरामदे में बैठा हूं वाह उनके द्वारा बोले गए एक-एक शब्द को सुन रहा था उन शब्दों को सुनकर उसे मुझे लग रहा था कि अंग्रेजी स्कूल में इतने पैसे खर्च करने का मुझे क्या फायदा हुआ? यें दोनों बच्चें तो जाहिलो की तरह आपस में गाली – गलौज करते हुए लड़ रहें हैं।
बहुत देर तक उसके कानों में अपने दोनों बच्चों की आवाजें आती रही । ऐसी आवाजें जो उसे और कुछ नहीं सिर्फ उनके गंवारपन का एहसास करा रही थी। वह वहीं पर बैठा यह सोच रहा था कि “लोग कहते हैं कि घर का माहौल जैसा होता है बच्चे वैसे ही बनते हैं लेकिन मैंने तो इन्हें ऐसा घर का माहौल दिया ही नहीं । अपनी मां की भी बातें यें नहीं सुन रहे । दोनों आपस में लडे़ ही जा रहे हैं और इनकी माॅं उन्हें समझाने की कोशिश किए ह जा रही है। बीच-बीच में मेरे नाम की धमकी भी दें रही है कि पापा को आने दो फिर तुम दोनों के कारनामे मैं उन्हें बताती हूॅं। उनको जो अपने बच्चों पर विश्वास है उस विश्वास को मैं टूटने नहीं देना चाहती थी इस कारण उन्हें यह सब बता नहीं रही थी और यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी जिसकी वजह से तुम दोनों इतने निर्भीक हो गए हो कि मेरी एक भी नहीं सुन रहे हो।”
“माॅं! तुम जाओ ना। यह हमारे बीच की बात है इनमें मत पड़ो। हम थोड़ी देर लड़ाई करेंगे और फिर ठीक हो जाएंगे ।” विजय के कानों में अपने बेटे रियांश की आवाज जैसे ही गई वह थके कदमों से बरामदे से होते हुए सीधे अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा।
रोज ही ऑफिस से आने के बाद विजय के कदम अपने दोनों बच्चों की पढ़ाई वाले कमरे की तरफ उठते थे लेकिन आज पहली बार ऐसा हुआ था कि वह दोनों बच्चों के पास जाना नहीं चाहता था । मन में उनके प्रति बहुत ही गुस्सा भरा था जिन्हें वह चाहता तो उसी वक्त उतार सकता था लेकिन विजय ने कुछ सोचकर ऐसा नहीं किया।
“आज आप आ गए हो लेकिन हमें पता ही नहीं चला?” अपनी पत्नी की आवाज सुनते ही बिस्तर पर लेटे विजय ने अपनी बंद आंखों को खोला और उसे देखने लगा।
विजय की पत्नी ने शायद अपने पति की ऑंखों में दर्द की लकीरें देख ली थी तभी तो उसने पूछा था कि “कोई बात तो जरूर है जो आपको परेशान कर रही हैं ।”
“कल बात करते हैं। अभी खाना लगा दो। बहुत थक चुका हूॅं सोना चाहता हूॅं।” कहते हुए विजय बिस्तर पर से उठकर हाथ – मुंह धोने के लिए बाथरूम में जाने लगा।
दूसरे दिन रविवार का दिन था विजय को भी ऑफिस नहीं जाना था। “यही सही समय है बच्चों से बातचीत करने का।” सोचते हुए विजय ने अपनी बड़ी बेटी रिया को पुकारा।
विजय ने पहले रिया से उसके बाद अपने बेटे रियांश से उस दिन बहुत देर तक खुलकर बातें की। एक दोस्त की तरह उन्हें जानने और समझने का पूरा प्रयास किया उस दिन विजय ने। दोनों बच्चों से बारी – बारी से बात करने के पाद विजय उनकी कही बातों को सोच ही रहा था कि उसकी पत्नी उसके सामने आकर बैठ गई।
“सुधा! मैं कल रात से यही सोच रहा था कि मुझसे कहा गलती हुई है अपनी हैसियत से ऊपर उठकर मैंने इन्हें अच्छा स्कूल देने की कोशिश सिर्फ इसलिए की कि यह दोनों समाज के उच्च वर्ग में बैठने लायक बन सके। उच्च वर्ग से यहां मेरा तात्पर्य बड़े पैसे वालों से नहीं है बल्कि समाज के उन वर्ग से हैं जो पढ़े – लिखे और समझदार की श्रेणी में आते हैं । मैंने यही सोचा था कि स्कूल बड़ा होने से उनमें दी जा रही शिक्षा भी उसी अनुसार होगी। आज मैंने बच्चों से बातचीत की । उनका स्कूल भी बहुत अच्छा है और उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया कि शिक्षक भी उन्हें बेहतर इंसान बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन इनके साथ पढ़ने वाले बच्चें आधुनिक दिखने की की होड़ में तमीज भूलते जा रहे हैं। जिन संस्कारों को हमने अपने माता-पिता से सीखा था वह संस्कार यें लोग अपने माता पिता के दबाव में करने को मजबूर है । दिल से वें उन्हें करना नहीं चाहते । आजकल के आधुनिक बच्चों को ईश्वर पर भी विश्वास नहीं । अपनी बातों में गाली – गलौज का इस्तेमाल कर वें अपने आप को आधुनिक दिखाना चाहते हैं । शिक्षक के ना रहने पर दोस्तों के साथ आपस में होने वाली बातचीत ही घर आकर उनके झगड़े के रूप में हमें सुनने को मिलती है।
जैसे स्कूल में यें अपने दोस्तों के साथ रे और तू करके बात करते हैं वैसे ही भाई – बहनों के साथ भी वैसी ही भाषा में बात करना शुरू कर देते हैं। जब छोटे अपने से बड़ों की तमीज करना भूल जाते हैं और बड़े भी छोटो को स्नेह नहीं देते ऐसे में कोई भी घर बच्चों के लिए जंग का अखाड़ा बन जाता है। छोटी-छोटी बातों पर इनके बीच लड़ाई – झगड़े शुरू हो जाते हैं । यहां तक की हंसी – मजाक करते – करते हुए भी या सामान्य बातचीत के बाद भी यह आपस में गाली – गलौज करना शुरू कर देते हैं।” विजय ने अपनी पत्नी सुधा की तरफ देखते हुए कहा।
“मैं भी अपने दोनों बच्चों के बारे में बात करने के लिए आपके पास आई थी। अच्छा हुआ आपने ही बातें शुरू कर दी।” सुधा ने विजय की तरफ देखते हुए कहा।
“हम दोनों को ही अपने बच्चों को अब प्यार से समझाना होगा कि स्कूल में उन्हें कैसे बच्चों से दोस्ती करनी है? बच्चों के साथ दोस्ती कर उनका भविष्य अंधेरे में नहीं जा सकता है? जहां तक मुझे दोनों बच्चों की बातों से मालूम चला है मुझे तो यही लग रहा है कि इनके दोस्तों के साथ ही ऐसी गाली – गलौज वाली बातचीत होती है। घर में भी हम उन्हें ऐसा माहौल नहीं दें रहे तो तुम खुद ही सोच सकती हो कि यह कहां से सीख कर आते होंगे ? स्कूल के दोस्त या फिर आस – पड़ोस के बच्चे जिन से इनका संपर्क होता है उन्हीं से ना ? उनके माता-पिता होने के कारण हमें इन सब चीजों पर नजर रखनी ही होगी तभी हमारे बच्चे अपनी बातचीत में भी वही शालीनता ला पाएंगे जिसे देखने का स्वप्न मैंने इनके पैदा होते ही देखा था। हमें अपने बच्चों को अब यह भी सिखाना होगा कि दोस्तों से बातचीत कैसे की जाती है ? हमारे दोनों बच्चों को तो यही लगता है कि दोस्तों से बातचीत हम किसी भी ढंग से कर सकते हैं । चाहे इसमें हमें गाली – गलौज ही क्यों ना देना पड़े लेकिन हमारे संस्कार हमें यह नहीं सिखाते कि दोस्तों के साथ हम गाली – गलौज और फूहर एवं गंवारों जैसी बातें करके ही उनके दोस्त बने रह सकते हैं । अच्छी बातें ही उनके साथ की जानी चाहिए। यें तमाम बातें सुधा तुम्हें और मुझे मिलकर उन्हें सिखानी होगी। नहीं तो! बहुत देर हो जाएगी और जैसे कल रात हमारा घर उन दोनों के लिए जंग का अखाड़ा बना हुआ था, ऐसे ही रोज ही बनता रहेगा और हम और तुम कल की भांति सिर्फ देखते ही रह जाएंगे, कुछ कर नहीं पाएंगे।” विजय ने सुधा की तरफ देख कर कहा।
विजय की कही बातें सुधा भी समझ चुकी थी और उसने भी अपने पति की बातों में हामी भरी क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी जानती थी कि इस उम्र में यदि उनके दोनों बच्चों को दुनियादारी की यें तमाम बातें नहीं सिखाई गई तो आगे चलकर वें संस्कार विहीन की श्रेणी में भी आ सकते है और कोई भी मां – बाप अपने बच्चों को उस श्रेणी में आया देखना पसंद नहीं करते हैं। विजया और उसकी पत्नी सुधा ने अपने दोनों बच्चों को सुधारने का मन ही मन निश्चय किया क्योंकि उनके दोनों बच्चों ने इसके सिवा उनके सामने कोई विकल्प छोड़ा ही नहीं था।
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗