छूट जाता है जो लम्हा भरकस
 खुश रहने की कोशिश का,
उसका ख्याल आता है
अक्सर देर रात।।
ख्वाब जो पूरे नहीं होते
कर्तव्यों की जद्दोजहद में,
उसका मलाल रहता है
अक्सर देर रात।।
ऑंखों में ठहरे रहते हैं
दिन के उजाले में छुपे रहते हैं
उन्हीं अश्कों से भीगता है चेहरा
अक्सर देर रात।।
सरोवर की लचकती कुमूदनी
प्रभाती की प्रतीक्षा में
रुप संवारती है 
अक्सर देर रात।।
स्वरचित✒️
कीर्ति चौरसिया जबलपुर मध्यप्रदेश
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