अंधा कानून
बिक जाता है ये चंद रुपयो मे,
कोई इमान नही , कोई सम्मान नही,
न किसी बेगुनाह की चिंता,
चंद कागज के टुकड़ो पर,
सत्य पर झूठ की मोहर लगा के,
सच को दबा के, झूठे गवाहों को दिखा के,
बेगुनाहों को फसा के,
चंद पैसे ले के जश्न मनाते है,
अपना बैंक बैलेंस बनाने के लिए,
गरीबों को दबाते हैं, खुद को उठाते है,
दलाली कर के लाखों रुपये कमाते है,
पैसों का जूनून है,
ये अंधा कानून है।
इनके नजरिये से ,
न्याय अन्याय है और अन्याय न्याय है।