इज़हार कुछ तरह हुआ इश्क़ का
की अब दुनिया बेगानी सी लगती है
जिन्हें कल तक जानतें भी न थे
आज उनमें दुनिया हमारी बसती है।।
बड़ा मनमौजी है मेरा महबूब
मेरी एक नही सुनता है
अक्सर करता वही हैं
जो दिल उसका कहता है।।
मुहब्बत बेसुमार है हमसे
उसके जज्बातो से पता चलता है
लेकिन जब भुलाने की बात हमे आती है
तो पीछे मुड़कर भी नही देखता है।।
न जाने क्या अंदाज है उसका!!
हर पल मुझे भरमाता है,
अगले पल क्या करेगा,
ये कोई नही समंझ पाता है।।
एक टीस सी उठतीं है
दिल के किसी कोने में
एक ख्याल मन घर जाता है
क्या उसे हमसे मुहहब्बत हुई है
या बातो से सिर्फ हमे बहलाता है।।
अश्क़ बहकर मेरे उसकी याद में
रुख़्सरो पर सुख जाते है
अब क्या कहे हम उनसे
वो हमें कितना याद आते है।।
न जाने कैसी चाहत है उसकी
जो मेरे जज्बातों को नही समझता है
दूर रहकर भी मुझसे वो
अक्सर दूर जाने की बाते करता है।।
लेकिन कुछ दूर जाने के बाद
वो खुद ही लौट आते है
तेरे बिन जिया नही जाता
वो अक्सर फ़ोन पर कहते है।।
सुमेधा शर्व शुक्ला