मौन हुई है प्रकृति
मौन है सुर संगीत
भाव की मुखरता
लता संग खोई है
प्रारब्ध देख दंग है
पुत्री चली माँ संग है
विकल हुई देश दुनिया
साज भी हुई भंग है
दिलों में बसती रहेगी
राग में सजती रहेगी
स्वर कोकिला थी वो
स्वर बन चहकती रहेगी
तारा जमीन की महान
कला की थी वो सुजान
विलीन हुई परमात्मा में
दे संगीत को नया आयाम
सुरों की धनी स्वर सम्राज्ञी
दे रहा ब्रह्मांड श्रद्धांजलि
संगीत की धड़कन को
नम आँखें दे रही विदाई
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
दिल्ली
सर्वाधिकार सुरक्षित©®