माँ सरस्वती से वरदान में
निराला कंठ आपने पाया
सुरों के साम्राज्य की एकछत्र
स्वर साम्राज्ञी आपही को बनाया।
मधुर सरस वाणी से अपनी
मन्त्र मुग्ध सबको किया
अद्भुत सुरों से संगीतमय
इस धरा को कर दिया।
गीतों ने तेरे अंतर में
अनगिनत भाव जगाये
अंधियारे गलियारों में दिल
के रोशनी के दिये जलाये।
अनूठी आवाज़ की अपनी
छटा चहुँओर बिखेरी
अद्वितीय बोलों से अपने
सारे जहां की तारीफें बटोरी।
अप्रतिम कला को अपनी
उत्कृष्टता की प्रदान
निरुपम हर भाव का
गीतों में सजाया मान।
विलक्षण प्रतिभा से अपनी
संगीत जगत को अनुपमेय बनाया
बेजोड़, लाजवाब स्वरों की
निर्मल गंगा को बहाया।
अनोखा व्यक्तित्व ऐसा आपने
लाखों करोड़ों में पाया
आवाज़ से अपनी दीवाना
सैकड़ो देशवासियों को बनाया।
सुख -दुख की अभिव्यक्ति को
हृदय से किया साकार
प्रेम -विरह के मनोभावों का
किया गहरा अपूर्व श्रृंगार।
गीतों में आपके ही हम
सब जीते रहेंगे हरदम
अंतिम विदाई की ये बेला
कर रही है ऑंखें नम………
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस ‘