अंगदान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा जैविक ऊतकों या अंगों को एक मृत या जीवित व्यक्ति से निकालकर उन्हें किसी दूसरे शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है।
दुनिया में पहली बार अंगदान 1954 में किया गया था,डॉक्टर जोसेफ मरे ने सबसे पहले किडनी ट्रांसप्लांट किया था।1990 में उन्हें फिजियोलॉजी में नोबल पुरस्कार दिया गया।
हमारे देश में अंगदान की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है ,दधीचि ऋषि के नाम से शायद ही कोई अनजान हो जिन्होंने मानव कल्याण हेतु अपना अंग दान देकर खुद को अमर कर दिया।
अंगदान दो प्रकार के होते हैं_
1) जीवित दाता द्वारा अंगदान
2)मृतक दाता द्वारा अंगदान
_एक जीवित व्यक्ति
अपना गुर्दा(दो गुर्दे में से एक गुर्दे से भी कार्य हो सकता है।)
यकृत अर्थात लिवर का एक हिस्सा_,लिवर में पुनर्निर्माण की प्रक्रिया होती रहती है।
फेफड़ा _,फेफड़े का एक हिस्सा,हालांकि इसमें पुनर्निर्माण नहीं होता।
अग्नाशय _का एक भाग।
अपरिहार्य परिस्थितियों में आंख भी दे सकता है।
कैंसर, एचआईवी जैसे रोगों से पीड़ित व्यक्ति अंगदान नहीं कर सकते।
_ मृतक दाता
एक व्यक्ति जिसकी मृत्यु मस्तिष्क या हृदय गति रुकने से हुई हो ,उसके कई अंग और ऊतकों को 6_72 घंटे के बीच में लिया जा सकता है।
एक मृतक दाता से गुर्दा,लिवर,फेफड़े,हृदय,अग्न्याशय,रक्तवाहिनी,
कॉर्निया, आंत,हड्डियां,रक्त और प्लेटलेट्स लिया जाता है।
लेकिन जितना आवश्यक यह अंगदान है ,लोगों की इसके प्रति जागरूकता उतनी ही कम है,लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष अंगदान दिवस मनाया जाता है।
हमारे देश में अंगदान को लेकर काफी धार्मिक भ्रांतियां हैं ,इसी कारण भारत में 10 लाख लोगों में से महज 0.26% लोग ही अंगदान करते हैं।
2019 में एम्स से जारी आंकड़ों 1.5_2 लाख
लोगों को प्रतिवर्ष किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है लेकिन महज 8000 लोग ही खुशकिस्मत होते हैं वो भी ज्यादातर उनके अपने रिश्तेदार या फिर किसी गरीब को बरगला फुसला कर उनसे एक किडनी मिलता है।अगर हमारे देश में लोग जागरूक हों अपनी नश्वरता को अमरता में रूपांतरित करने को तो शायद मानव अंग तस्करी पर नकेल लग सके।
गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन इसके लिए प्रयासरत हैं।इच्छुक लोग अपना वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन भी करा सकते हैं।
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