सच बात तो सदैव,केवल सच ही होता।
उसको डर ना कभी,किसी का है होता।
सच से कभी ना भागें,इसे करें स्वीकार।
झूठ कपट छल ईर्ष्या,त्यागो ये सब यार।
कन्धे पर है बोझ तुम्हारे,तुम्हें उठाना है।
भागेंगे सच से तो,कहाँ फ़र्ज निभाना है।
लोभ मोह माया के,चक्कर में भाग रहा।
जीवन की सच्चाई से,क्यों यूँ भाग रहा।
सच से जितना भागें,व झूठा पर्दा डालें।
सच कभी छुपे न,कितना भी झूठ पालें।
सच्चाई से कोई भी,भाग नहीं है सकता।
स्वीकार अंततः सभी को करना पड़ता।
पाप भी करने वाले,कार्य गलत है जानें।
फिर भी इस सच्चाई,को क्यों नहीं मानें।
बुरे कर्म के बुरे नतीजे,ये तो सभी जानें।
सच्चाई से भागे फिरते,बुरे कर्म ही ठाने।
सच की होती जीत सदा,सच से न भागें।
ईश्वर है सब देख रहा,आँखे खोलें जागें।
धन दौलत के वास्ते ईमान कभी न खोयें।
ऐसा ना हो जन्म भर,इसके पीछे ही रोयें।
कर्म कसौटी होती है,जो बने उसे निभायें।
फर्ज निभाना सच्चाई है,उससे न घबरायें।
साँच को कभी भी,लगती नहीं है ये आँच।
झूठ कभी मत बोलना,बोलो तो लो जाँच।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.